दिक्कत ये है कि जब हम मरें तो हमारे शरीर को श्मशानघाट तक ले जाने के लिये कम से कम चार जिन्दा लोग चाहिये। अगर 5-10 हजार इंटरनेट मित्रों से 4 भी निकल आयें तो ये बहुत ही अच्छा रास्ता है यारी दोस्ती का। वर्ना, बरसों, घंटों कम्प्यूटर स्क्रीन के सामने बैठकर आंखें फोड़ना कहीं से भी बेवकूफी से ज्यादा क्या है?
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दिक्कत ये है कि जब हम मरें तो हमारे शरीर को श्मशानघाट तक ले जाने के लिये कम से कम चार जिन्दा लोग चाहिये। अगर 5-10 हजार इंटरनेट मित्रों से 4 भी निकल आयें तो ये बहुत ही अच्छा रास्ता है यारी दोस्ती का। वर्ना, बरसों, घंटों कम्प्यूटर स्क्रीन के सामने बैठकर आंखें फोड़ना कहीं से भी बेवकूफी से ज्यादा क्या है?
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