शर्म के लिए भी कोई दिन तय है ??
नौटंकी का दृश्य है, इक सैनिक बिन माथ |युद्ध क्षेत्र में है पड़ा, तू भी उसके साथ | तू भी उसके साथ, हाथ तेरा कट जाए |लेकर उसका हाथ, बोल तू कसक लगाए |होंवे जब दो हाथ, हाथ दो-दो कर लेना |यही आखिरी सीन, विदाई रविकर देना ||
कुछ नहीं, बस मौन रहना है.ठीक है?
ठीक है जी...
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शर्म के लिए भी कोई दिन तय है ??
नौटंकी का दृश्य है, इक सैनिक बिन माथ |
युद्ध क्षेत्र में है पड़ा, तू भी उसके साथ |
तू भी उसके साथ, हाथ तेरा कट जाए |
लेकर उसका हाथ, बोल तू कसक लगाए |
होंवे जब दो हाथ, हाथ दो-दो कर लेना |
यही आखिरी सीन, विदाई रविकर देना ||
कुछ नहीं, बस मौन रहना है.
ठीक है?
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