प्रश्न एक ही है, उत्तर बढ़ते जा रहे हैं।
भरत भूमि के भीतरे भरे राय अधि काय । सागर तरंग धैर सम एक आवत एक जाय ॥ भावार्थ : --भारत वर्ष के भीतर मुख्य एवं प्रधान स्वरूप में, बहुत से राजा महाराजा भरे है । सागर की तरंगो के जैसे, एक जाता है तो दुसरा आ जाता है ।।
Koi kami nahin, abhi aur judegen, isliye abhi prashan puchna jaldi hoga
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प्रश्न एक ही है, उत्तर बढ़ते जा रहे हैं।
भरत भूमि के भीतरे भरे राय अधि काय ।
सागर तरंग धैर सम एक आवत एक जाय ॥
भावार्थ : --
भारत वर्ष के भीतर मुख्य एवं प्रधान स्वरूप में, बहुत से राजा महाराजा भरे है ।
सागर की तरंगो के जैसे, एक जाता है तो दुसरा आ जाता है ।।
Koi kami nahin, abhi aur judegen, isliye abhi prashan puchna jaldi hoga
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