कोउ भुवन भूखन मरे को जग ऊँचि अटार । बाट बाट ढूंडत फिरे कहँ वहँ की सरकार ॥
भावार्थ : -- कोई धरती पर भूखा मर रहा है, कोई संसार की सबसे ऊंचे भवन में भूखा मर रहा है, सभी स्थानों पर ढूंड लिया, किन्तु ऐसे देश में 'सरकार' कहीं नहीं मिली..... अर्थात : -- " जहाँ धनिक और निर्धन के मध्य गहरी खाई हो वहां शासन का कोई अस्तित्व नहीं होता"
2 comments:
न जाने किसकी नजर लग गयी..
कोउ भुवन भूखन मरे को जग ऊँचि अटार ।
बाट बाट ढूंडत फिरे कहँ वहँ की सरकार ॥
भावार्थ : --
कोई धरती पर भूखा मर रहा है, कोई संसार की सबसे ऊंचे
भवन में भूखा मर रहा है, सभी स्थानों पर ढूंड लिया, किन्तु
ऐसे देश में 'सरकार' कहीं नहीं मिली.....
अर्थात : -- " जहाँ धनिक और निर्धन के मध्य गहरी खाई हो
वहां शासन का कोई अस्तित्व नहीं होता"
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