बँदा खाब गफलत में, ओढ़े मोटी खाल / आप लालो जवाहिरे, दूजन खान ख्याल /२१४/
भावार्थ : -- सरकारी बन्दे अपने बदन पे मोटी-मोटी खाल ओढ़ के ख्वाबे-गफलत में हैं अर्थात गहरी नींद में हैं /खुद के खाने में लाल मानिक जैसे जवाहर चाहिए और दुसरे का खाना-ख्याली है अर्थात भोजन सपना है //
शब्दकोष देते बदल, दल बल छल आयॊग | सब "गरीब रथ" पर चढ़े, किये बिना उद्योग | किये बिना उद्योग, हिरन खुद घुसे गुफा में | खा जाए अब शेर, हाथ में बगुली थामे | गजल कह रहे शेर, बदल कर आज गद्य को | गिरता गया अमीर, सँभालो पकड़ शब्द को ||
4 comments:
बँदा खाब गफलत में, ओढ़े मोटी खाल /
आप लालो जवाहिरे, दूजन खान ख्याल /२१४/
भावार्थ : -- सरकारी बन्दे अपने बदन पे मोटी-मोटी खाल ओढ़ के ख्वाबे-गफलत में हैं अर्थात गहरी नींद में हैं /खुद के खाने में लाल मानिक जैसे जवाहर चाहिए और दुसरे का खाना-ख्याली है अर्थात भोजन सपना है //
शब्दकोष देते बदल, दल बल छल आयॊग |
सब "गरीब रथ" पर चढ़े, किये बिना उद्योग |
किये बिना उद्योग, हिरन खुद घुसे गुफा में |
खा जाए अब शेर, हाथ में बगुली थामे |
गजल कह रहे शेर, बदल कर आज गद्य को |
गिरता गया अमीर, सँभालो पकड़ शब्द को ||
बताइये..लोगों को कौन बतायेगा।
कल की टिप्पणी कब पब्लिश होगी भाई जी-
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