डाह दाह निंदा धुँआ , कलुखे मति आकास /वाके अंजन नयन दिए, राखे दूर प्रकास /३९१ /भावार्थ :-- ईर्ष्या यदि अग्नि है तो निंदा धुँवा है,जो मस्तिष्क के आकाश को कलुषित कर देता है / यदि इस कलुषाई के काजल को दृष्टि-पलक में लगाया जाए तो वह काजल, व्यक्ति को सत्य रूपी प्रकाश से दूर करते हुवे उसे अंधा अर्थात विचारहीन घोषित कर देता है //
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डाह दाह निंदा धुँआ , कलुखे मति आकास /
वाके अंजन नयन दिए, राखे दूर प्रकास /३९१ /
भावार्थ :-- ईर्ष्या यदि अग्नि है तो निंदा धुँवा है,जो मस्तिष्क के आकाश को कलुषित कर देता है / यदि इस कलुषाई के काजल को दृष्टि-पलक में लगाया जाए तो वह काजल, व्यक्ति को सत्य रूपी प्रकाश से दूर करते हुवे उसे अंधा अर्थात विचारहीन घोषित कर देता है //
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