सालों साल यह खेल चलता है लेकिन किसी को पता ही नहीं चलता, यह कैसे संभव हो जाता है, आम आदमी के समझ से परे रहता है। सब मिलीभगत का नतीजा है। देग चढ़ी रहती हैं चूल्हे पर और खिचड़ी पकती रहती है, पर खाने वाले गिने चुने और फिर हवा ने जोर मारा तो फुर्र होते देर नहीं लगती, बड़ी बिडंबना है देश की। बड़ी खबर का इंतज़ार करते रहते हैं हम देशवासी ....
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3 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन दादा साहेब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
सालों साल यह खेल चलता है लेकिन किसी को पता ही नहीं चलता, यह कैसे संभव हो जाता है, आम आदमी के समझ से परे रहता है। सब मिलीभगत का नतीजा है। देग चढ़ी रहती हैं चूल्हे पर और खिचड़ी पकती रहती है, पर खाने वाले गिने चुने और फिर हवा ने जोर मारा तो फुर्र होते देर नहीं लगती, बड़ी बिडंबना है देश की। बड़ी खबर का इंतज़ार करते रहते हैं हम देशवासी ....
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