उड़ा पड़ा तृण-मूल से, होवे ममता ख़त्म ।चरणों में जाकर चढ़ा, निभा गया बस रस्म ।निभा गया बस रस्म, मुलायम पंखुड़ियों ने ।पछुवा रुख पहचान, लगे जाकर लड़ियों में |रविकर बंदनवार, राष्ट्रपति का सजता है |दो ही ढपली राग, अलग ममता बजता है ||
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उड़ा पड़ा तृण-मूल से, होवे ममता ख़त्म ।
चरणों में जाकर चढ़ा, निभा गया बस रस्म ।
निभा गया बस रस्म, मुलायम पंखुड़ियों ने ।
पछुवा रुख पहचान, लगे जाकर लड़ियों में |
रविकर बंदनवार, राष्ट्रपति का सजता है |
दो ही ढपली राग, अलग ममता बजता है ||
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