कीर्तिश जी, व्यंग्य तीखा है .... । पुरुषवादी समाज के लोग 'महिला दिवस' के नाम पर उनके लिए खरीददारी कर लाते हैं। उनको रिश्तेदारों में घुमा लाते हैं। उनकी दो बातें मान लेते हैं। उनके चटोरेपने को संतुष्ट कर देते हैं। उनकी अनपेक्षित डांट पर पलटकर जवाब नहीं देते। सच है ...........'महिला दिवस' को पुरुष के बिना मना पाना संभव भी नहीं।
3 comments:
एक दिन ही मनायेंगे ये तो।
Unfortunately realistic :-(
कीर्तिश जी, व्यंग्य तीखा है .... । पुरुषवादी समाज के लोग 'महिला दिवस' के नाम पर उनके लिए खरीददारी कर लाते हैं। उनको रिश्तेदारों में घुमा लाते हैं। उनकी दो बातें मान लेते हैं। उनके चटोरेपने को संतुष्ट कर देते हैं। उनकी अनपेक्षित डांट पर पलटकर जवाब नहीं देते। सच है ...........'महिला दिवस' को पुरुष के बिना मना पाना संभव भी नहीं।
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