अंजन माँगे आँधरा, गंजा कंघी तेल। सत्ता के सुख भोगने, खेलें चुनाउ खेल।।
भावार्थ : -- आँख का अंधा सिंगार कू अंजन मांगे, जोती बढ़ानी है । सिर का गंजा कंघी और तेल माँगे, भाई अंधे को आँख दो, गंजे को टोप दो । बुद्धिहीन को बुद्धि दो, 'मत' मत दो । सत्ता के सुख भोगने के लिए चुनाव-चुनाव खेल रहे हैं, तो जिसके पास जो नहीं है वही दो ।।
2 comments:
दाँय मची है।
अंजन माँगे आँधरा, गंजा कंघी तेल।
सत्ता के सुख भोगने, खेलें चुनाउ खेल।।
भावार्थ : -- आँख का अंधा सिंगार कू अंजन मांगे, जोती बढ़ानी है । सिर का गंजा कंघी और तेल माँगे, भाई अंधे को आँख दो, गंजे को टोप दो । बुद्धिहीन को बुद्धि दो, 'मत' मत दो । सत्ता के सुख भोगने के लिए चुनाव-चुनाव खेल रहे हैं, तो जिसके पास जो नहीं है वही दो ।।
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