सुर हो जाते हैं असुर, नहीं सिद्ध जब स्वार्थ । युद्ध दुशासन छेड़ दे, किन्तु क्लीव नहिं पार्थ । किन्तु क्लीव नहिं पार्थ, सुयोधन मुँह की खाये । मरे कुटुम्ब समेत, नाम दुर्योधन पाये । करें अधर्म अनीति, फूटता नइखे बक्कुर । दीदी के शुभ बोल, सहे कैसे सत्तासुर ।
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सुर हो जाते हैं असुर, नहीं सिद्ध जब स्वार्थ ।
युद्ध दुशासन छेड़ दे, किन्तु क्लीव नहिं पार्थ ।
किन्तु क्लीव नहिं पार्थ, सुयोधन मुँह की खाये ।
मरे कुटुम्ब समेत, नाम दुर्योधन पाये ।
करें अधर्म अनीति, फूटता नइखे बक्कुर ।
दीदी के शुभ बोल, सहे कैसे सत्तासुर ।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
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